Wednesday, December 23, 2009

इस शहर में घूमता है

इस शहर में घूमता है देख ले

शख्स कोई चाँद सा है देख ले

अश्क पानी,खाब मिटटी हो गए,

बाद तेरे क्या हुआ है देख ले

कुर्बतें तो नाम की हैं दरमियां,

फासला ही फासला है देख ले

राहबर ही राहबर हैं हर तरफ,

गुम मगर हर रास्ता है देख ले

प्यार की इक आरज़ू में आजकल,

कोई तुझको देखता है देख ले

2 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Ham ko bha gayi aapki ghazal,
Dekhta hai to zamana dekh le.

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2009 के श्रेष्ठ ब्लागर्स सम्मान!
अंग्रेज़ी का तिलिस्म तोड़ने की माया।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

प्यार की इक आरज़ू में आजकल,
कोई तुझको देखता है देख ले

वाह मुस्तफा जी...अन्दर की बात बयाँ किया आपने...ग़ज़ल अच्छी लगी

- सुलभ