Monday, December 21, 2009

ज़रा सी ज़िन्दगी है

ज़रा सी ज़िन्दगी है और इसमें प्यार करना है
भला फिर किसलिए दिल में खड़ी दीवार करना है।

तुम्हारे शहर में तो दुश्मनी का है यही किस्सा,
कहीं पर दर्द देना है कहीं पर वार करना है ।

मुझे भी चाहिए हिम्मत उसे भी चाहिए हिम्मत,
मुझे इज़हार करना है उसे इनकार करना है

परख लेना बहुत सी बार तब तुम बैठना जाकर,
तुम्हे इस एक कश्ती से समंदर पार करना है

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......