दिखावे के लिए मुजरिम हमेशा चंद रहते हैं
सलाखों में यहाँ मासूम सारे बंद रहते हैंवो चाहे दर्द दे या मुफलिसी दे या परेशानी
मगर हम हर घडी उसके अकीदत मंद रहते हैं
भरोसा टूट जाए तो मुहब्बत रूठ जाती है
ये कच्चे रास्ते बरसात हो तो बंद रहते हैं
तुम्हारी कीमती पोशाक से अलमारियां फुल हैं
मेरे त्यौहार के कपड़ों में भी पैवंद रहते हैं
हमेशा वक़्त पर देते हैं धोखा ज़िम्मेदारी से
मेरे अपने हों कैसे भी मगर पाबंद रहते हैं
अंधेरों की चलो आँखों में आँखें डाल दूं मैं ही,
उजालो के यहाँ बुझदिल ज़रूरतमंद रहते हैं.
2 comments:
वाह मुस्तफा साहेब,
बहुत अच्छे से निभाया है काफिये को.
पूरी ग़ज़ल लाजवाब है, मतला इस बात की गवाही दे रहा है, वाह वाह वाह
अगला शेर तो ग़ज़ब ढा रहा है,
"भरोसा टूट जाए............."
बात को कहने का ढंग कोई आपसे सीखे, इस शेर पे मेरे सारे शेर कुर्बान.
"तुम्हारे कीमती ....................", अहा क्या पिरोया है, लफ़्ज़ों की अदायगी को सलाम.
मीलों चलने वाली ग़ज़ल लिखने पर आपको ढेरों बधाई दिल से..................
एक सवाल भी कैसे लिख लेते हो इतने अच्छे शेर भाई, कोई जादू वाली कलम मिल गयी है क्या?
मुस्तफा साहब
पहली बार आपके ब्लॉग पर आये...मगर लगा कि अब आते ही रहना पड़ेगा.....!
दिखावे की उकूबत को तो मुजरिम चंद रहते हैं
सलाखों में यहाँ मासूम सारे बंद रहते हैं
क्या बेहतरीन मतला है ...बिलकुल मंझा हुआ....!
भरोसा टूट जाए तो मुहब्बत रूठ जाती है
ये कच्चे रास्ते बरसात हो तो बंद रहते हैं
क्या ही जबरदस्त शेर रच दिया ......रास्ते ऐसे भी बंद होते हैं...वाह वाह !
तुम्हारे कीमती कपड़ों से सब अलमारियां फुल हैं
मेरी त्यौहार की पोशाक में पैवंद रहते हैं
बड़े अरसे बाद नए मिजाज़ का शेर पढ़ा है बहुत सुन्दर प्रयोग "फुल "मार्क्स टू यू...!
बहुत बहुत शानदार ग़ज़ल...!
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