नाम मेरा मोतबर होने लगा।
सर रखा तुमने क्या मेरे काँधे पर,
ये ज़माना मेरे सर होने लगा।
ज़िन्दगी महदूद सी लगने लगी
कोई मुझमें मुख्तसर होने लगा।
आरजू ही बस चिरागों की हुई
आँधियों का भी गुज़र होने लगा ।
झूठ, धोका, बेईमानी, गैर -पन
गाँव अपना भी शहर होने लगा ।
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