तुम्हारी आँखें हैं कि जादू का समंदर
Tuesday, June 2, 2009
मैं हूँ खाना
मैं हूँ खाना बदोश घर दे दे।
इस अंधेरे को तू सहर दे दे।
ज़िन्दगी एक बेवफा कासिद,
जाने कब मौत की ख़बर दे दे।
या किसी पल तू ख़ुद को साकित* कर
या मेरी जुस्तजू को पर दे दे।
ज़िन्दगी जीत का ही नाम नही,
हारने का भी तू हुनर दे दे।
*ठहराव ।
1 comment:
Ankit
said...
waah waah
July 16, 2009 at 3:18 AM
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1 comment:
waah waah
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