Friday, September 25, 2009

हर एक पल हुआ है

हर एक पल हुआ है हर एक पल पे भारी
यादें सता रहीं हैं हमको बहुत तुम्हारी

मेरी हयात क्या है हर कोई जानता है
दरया अजीब सा है साकित है ना है जारी

इस ज़िन्दगी को मिलकर जीना था साथ लेकिन
तुमने कहीं गुजारी हमने कहीं गुजारी

दीदार दे रहे हो एहसान खूब लेकिन
आँखें ही जानती हैं आंखों की बेक़रारी

बाज़ी मुहब्बतों की नुक्सान ना नफे की
इक हार मैंने जीती इक जीत मैंने हारी

2 comments:

ओम आर्य said...

दीदार दे रहे हो अहसान खुब लेकिन,
आँखें ही जानती हैं आंखों की बेक़रारी ।

बहुत ही खुबसूरत बात कह डाली है आपने.......

Pawan Nishant said...

bahut achchha likhte ho mere bhai. aapne toh mere purane din yaad dila diye.
Pawan Nishant