यादें सता रहीं हैं हमको बहुत तुम्हारी
मेरी हयात क्या है हर कोई जानता है
दरया अजीब सा है साकित है ना है जारी
इस ज़िन्दगी को मिलकर जीना था साथ लेकिन
तुमने कहीं गुजारी हमने कहीं गुजारी
दीदार दे रहे हो एहसान खूब लेकिन
आँखें ही जानती हैं आंखों की बेक़रारी
बाज़ी मुहब्बतों की नुक्सान ना नफे की
इक हार मैंने जीती इक जीत मैंने हारी
2 comments:
दीदार दे रहे हो अहसान खुब लेकिन,
आँखें ही जानती हैं आंखों की बेक़रारी ।
बहुत ही खुबसूरत बात कह डाली है आपने.......
bahut achchha likhte ho mere bhai. aapne toh mere purane din yaad dila diye.
Pawan Nishant
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