Tuesday, September 29, 2009

बात नहीं की मैंने कुछ ऐसी जो चुभ जाए मन में ।

बात नहीं की मैंने कुछ ऐसी जो चुभ जाए मन में ।
तुम तो रिश्ते तोड़ गए सब एक ज़रा सी अनबन में ।

तू अपने फूलों की मुझसे बातें अक्सर करता है,
पूछ कभी मुझसे भी कितने खार हैं मेरे दामन में।

एक ये दिन जब प्यार की खातिर दिल में जगह का काल पड़ा
एक वो दिन जब किरकेट होता था छोटे से आँगन में।

अब भी नज़र जब चाँद के काले गड्ढों पर पड़ जाती है,
मुझको चरखे वाली बुढ़िया ले जाती है बचपन में ।

मौसम होता दर्द का तो फिर दर्द भी था मंज़ूर हमें ,
लेकिन अबतो सूख रहे हैं खेत हमारे सावन मैं ।

तुम मुझसे मेरे हिस्से की शोहरत छीन नहीं सकते
खुशबू हवा की बतलाती है फूल खिला है गुलशन में ।

हमदम भी हो आशिक भी हो सुख दुःख का साथी भी हो
देखो पगली ढूँढ रही है क्या क्या अपने साजन में ।

2 comments:

ओम आर्य said...

bahut hi sundar.......

Murari Pareek said...

waah ati sundar !! badhaai ho !! please ye word verification hataa do!!