ज़रा सी ज़िन्दगी है और इसमें प्यार करना है
भला फिर किसलिए दिल में खड़ी दीवार करना है।
तुम्हारे शहर में तो दुश्मनी का है यही किस्सा,
कहीं पर दर्द देना है कहीं पर वार करना है ।
मुझे भी चाहिए हिम्मत उसे भी चाहिए हिम्मत,
मुझे इज़हार करना है उसे इनकार करना है
परख लेना बहुत सी बार तब तुम बैठना जाकर,
तुम्हे इस एक कश्ती से समंदर पार करना है
भला फिर किसलिए दिल में खड़ी दीवार करना है।
तुम्हारे शहर में तो दुश्मनी का है यही किस्सा,
कहीं पर दर्द देना है कहीं पर वार करना है ।
मुझे भी चाहिए हिम्मत उसे भी चाहिए हिम्मत,
मुझे इज़हार करना है उसे इनकार करना है
परख लेना बहुत सी बार तब तुम बैठना जाकर,
तुम्हे इस एक कश्ती से समंदर पार करना है
2 comments:
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
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