तुम्हारी आँखें हैं कि जादू का समंदर
Sunday, August 14, 2011
इस १५ अगस्त पर देश के हर नौजवान के लिए मुस्तफा माहिर की ये चंद पंक्तियाँ
ज़माना झूठ का है सच का दरपन कौन देखेगा .
भले हो साफ़ लेकिन आपका मन कौन
देखेगा .
वतन की ज़िम्मेदारी हर किसी को दे नहीं सकते,
हमें अब सोचना होगा कि गुलशन कौन देखेगा
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