Tuesday, November 17, 2009

मुस्कुराने तलक की अदा


मुस्कुराने तलक की अदा ले गए ।


फूल से अबके मौसम ये क्या ले गए ।


गाँव के बूढ़े क्या सो गए कब्र में ,


यूँ लगा रूठ कर सब उजाले गए ।


रह गए आँख में झिलमिला कर फकत,


अश्क सच्चे थे अजमत बचा ले गए ।


4 comments:

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

संजय भास्‍कर said...

काबिलेतारीफ बेहतरीन

निर्मला कपिला said...

बहुत खूब बधाई

Ankit said...

वाह मुस्तफा साहेब,
बहुत खूब ग़ज़ल कही है, मतले बहुत नाज़ुक अंदाज़ में बात कह रहा है और उस पर लाजवाब शेरों ने कहर ढा दिया है.
ग़ज़ल को जल्द से जल्द मुकम्मल करो और पूरी सुनाओ.
इंतज़ार रहेगा.
:> अंकित सफ़र