मुस्कुराने तलक की अदा ले गए ।
फूल से अबके मौसम ये क्या ले गए ।
गाँव के बूढ़े क्या सो गए कब्र में ,
यूँ लगा रूठ कर सब उजाले गए ।
रह गए आँख में झिलमिला कर फकत,
अश्क सच्चे थे अजमत बचा ले गए ।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
काबिलेतारीफ बेहतरीन
बहुत खूब बधाई
वाह मुस्तफा साहेब,बहुत खूब ग़ज़ल कही है, मतले बहुत नाज़ुक अंदाज़ में बात कह रहा है और उस पर लाजवाब शेरों ने कहर ढा दिया है.ग़ज़ल को जल्द से जल्द मुकम्मल करो और पूरी सुनाओ.इंतज़ार रहेगा.:> अंकित सफ़र
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4 comments:
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
काबिलेतारीफ बेहतरीन
बहुत खूब बधाई
वाह मुस्तफा साहेब,
बहुत खूब ग़ज़ल कही है, मतले बहुत नाज़ुक अंदाज़ में बात कह रहा है और उस पर लाजवाब शेरों ने कहर ढा दिया है.
ग़ज़ल को जल्द से जल्द मुकम्मल करो और पूरी सुनाओ.
इंतज़ार रहेगा.
:> अंकित सफ़र
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